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हिंदू धर्म में 33 करोड़ या 33 कोटि देवी देवता कौन-कौन से है?


हिंदू धर्म में 33 करोड़ या 33 कोटि देवी देवता कौन-कौन से है? हमारे धर्मग्रंथो मे '33 कोटि' देवताओ का वर्णन है, जहाँ कोटि शब्द को लेकर काफी भ्रामक प्रचार है। अधिकतर हम लोग कोटि को करोड़ से ही परिभाषित करते है।

कोटि के प्रायः दो अर्थ है एक “प्रकार” और दूसरा “करोड़” और शायद इसीलिए हम '33 कोटि' देवतओं को '33 करोड़' देवता कहते है।

इन '33 कोटि' देवताओं को मुख्यत: 4 श्रेणियों मे विभाजित किया गया है।

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8 वसु

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वसु को शास्त्रों में इस प्रकार परिभाषित किया है अर्थात जहाँ कोई वास करता हो जैसे जीवात्मा हमारे शरीर मे निवास करती है। हमारा शरीर इन 8 वसुओं का ही बना होता है ये इस प्रकार है

(1) अपस - इसका अर्थ होता है जल

(2) ध्रव - ध्रुव तारा

(3) सोम - इसका अर्थ है चन्द्रमा

(4) धरा - इसका अर्थ है पृथ्वी

(5) अनिल - इसका अर्थ है वायु

(6) अनल - इसका अर्थ है अग्नि

(7) प्रत्यूष - इसका अर्थ है अंतरिक्ष



12 आदित्य

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आदित्य का अर्थ यहाँ भगवान सूर्य से है। सूर्य भगवान प्रत्येक राशि मे एक माह के लिए विचरण करते है फिर दूसरी राशि मे प्रवेश करते है। इस प्रकार 12 माह मे 12 राषियो मे चक्कर लगाते है।

इसी आधार पर हमारा हिन्दू कलैण्डर बनाया जाता है इसलिए इन्हे 12 प्रकार से व्यक्त किया जाता है इन्हे हमारी आयु हरने वाला भी कहा जाता है क्योकि जैसे - जैसे दिन बढ़ते है। हमारी आयु भी कम होती जाती है ये इस प्रकार है-

अंशुमान - यह प्राण वायु का प्रतिनिधित्व करते है।

अर्यमन - यह प्रातः और रात्रि के चक्र को दर्शाते है।

इंद्र - यह देवो के राजा है समस्त इन्द्रियों पर इन्ही का अधिकार है।

त्वष्टा - यह वनस्पति और औषधियों का प्रतिनिधत्व करते है।

धाता - यह प्रजापति के रूप है इन्हे सृष्टिकर्ता भी कहाँ जाता है।

पर्जन्य - यह मेघों का प्रतिनिधित्व करते है जो वर्षा के कारक है।

पूषा - यह अन्न का प्रतीक है तथा उसमे उपस्थित ऊर्जा, स्वाद और रस को दर्शाते है।

भग - यह शरीर में चेतना, ऊर्जा शक्ति, काम शक्ति तथा जीवंतता की अभिव्यक्ति को दर्शाते है।

मित्र - यह सृष्टि के विकास के कर्म को दर्शाते है।

वरुण - यह जल का प्रतिनिधित्व करते है तथा भाग्य को भी दर्शाते है।

विवस्वान - यह तेज और ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते है।

विष्णु - यह ब्रह्माण्डीय कानून और उसके संचालन का प्रतिनिधत्व करते है।



11 रूद्र

यहाँ पर ये रूद्र शरीर के अव्यव है। जब तक ये शरीर मे विध्यमान है, हमारा शरीर गतिमान है। किन्तु जब ये अव्यव शरीर से प्लायन कर जाते है तब येही रूद्र अर्थात रोदन कराने वाले होते है। जब हमारा शरीर मृत हो जाता है तब हमारे सगेसंबंधी हमारी मृत देह पर रोदन करते है।

इसीलिए इन्हे रूद्र अर्थात रुलाने वाला कहा गया है इनमे प्रथम पांच ” प्राण ” और दूसरे पांच ” उपप्राण ” है 11 वा रूद्र ही जीवात्मा है। ये सभी शरीर के अलग-अलग भागों में स्थित होते हैं तथा अलग-अलग अंगों व क्रियाओं को संचालित करते हैं। ये इस प्रकार है -

(1) प्राण प्राण गले से लेकर हृदय तक के अंगों एवं स्वर तंत्र, श्वसन तंत्र, भोजन नली, श्वास नली, फेफड़े-हृदय आदि को स्वस्थ रखता है। यह हृदय में स्थित होता है।

(2) अपान अपान का कार्य मल-मूत्र त्याग, प्रसव आदि क्रियाओं को संचालित करता है। यह गुदा और मूत्रेन्द्रियों के बीच स्थित होता है।

(3) व्यान यह शरीर में रक्त संचार करता है। इसका स्थान मष्तिष्क का मध्य भाग है।

(4) उदान उदान गले के ऊपर के अंगों मुंह, दांत, नाक, आंख, कान, माथा, मस्तिष्क आदि का संचालन करता है। उदान विविध वस्तुएँ बाहर से शरीर के भीतर ग्रहण करता है। यह कंठ में स्थित होता है।

(5) समान इसका स्थान नाभि में होता है, पाचक रसों का उत्पादन और उनका स्तर उपयुक्त बनाये रहना इसी का काम है।

(6) नाग नाग का कार्य वायु सञ्चार, डकार, हिचकी, गुदा वायु का उत्तसर्जन करना। यह “प्राण” का “उपप्राण” है तथा यह भी हृदय में स्थित होता है।

(7) कूर्म्म कूर्म से पलक मारने और बन्द होने की क्रिया होती है। यह “अपान” का “उपप्राण” है तथा यह भी गुदा और मूत्रेन्द्रियों के बीच स्थित होता है।

(8) कृकल कृकल का कार्य भूख-प्यास को संचारित करना है। यह “समान” का “उपप्राण” है यह भी नाभि में स्थित होता है।

(9) देवदत्त यह छींक आने और अंगड़ाई आने की क्रिया है। यह “उदान” का “उपप्राण” है इसका स्थान भी कंठ में होता है।

(10) धनञ्जय धनञ्जय जीवित अवस्था में शरीर का पोषण करता है और मरने पर देह सड़ा-गला कर शीघ्र नष्ट करने का प्रबन्ध करता है। इसका प्रधान केन्द्र मस्तिष्क का मध्य भाग है। यह “व्यान” का “उपप्राण” है इसका स्थान भी मष्तिष्क का मध्य भाग होता है।

(11) जीवात्मा इसके निकलते ही शरीर क्रिया करना बंद कर देता है।



2 अश्वनीकुमार

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अश्वनीकुमार त्वष्टा की पुत्री और सूर्य देव की संतान है जिन्हे आयूर्वेद का आदि आचार्य माना जाता है इनके नाम इस प्रकार है -

(1) नासत्य

(2) दस्त्र