The Sanskrit
Language says:
आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।
जन्मान्तरसहस्रेषु दारिद्र्यं नोपजायते।।
पद्धति: सबसे पहले सम स्थिति में सूर्याभिमुख सावधान की स्थिति में खड़े हो जायें । दोनों हाथों को ऊपर से लाकर नमस्कार की मुद्रा बनायें ।
पद्धति: श्वास भरते हुए हाथों को ऊपर उठाते हुए, बिना कोहनी मोड़े पीछे की ओर ले जायें । सिर हाथों के बीच में स्थित रहेगा, कमर को यथाशक्ति पीछे झुकायें ।
पद्धति: श्वास बाहर निकालकर हाथों को सामने झुकाते हुए पैरों के पास जमीन पर टिका दें तथा सिर को घुटनों से लगाने का प्रयास करें, घुटने न मोड़ें ।
पद्धति: वास अन्दर भरकर दायें पैर को पीछे की ओर लें जायें तथा बायां पैर 90 डिग्री पर रहे, दृष्टि सामने की तरफ रहे ।
पद्धति: वास बाहर निकालकर बायें पैर को भी पीछे ले जायें, गर्दन और सिर दोनों हाथों के बीच में रहे । संभव हो तो सिर जमीन से लगा सकते हैं ।
पद्धति: श्वास को रोककर हाथों एवं पैरों के पंजों को स्थिर रखते हुए छाती एवं घुटनों से भूमि का स्पर्श करें । श्वास सामान्य रहे ।
पद्धति: श्वास अन्दर भरकर छाती को ऊपर उठायें, नाभि तक का भाग भूमि पर टिका हो । दृष्टि आकाश की ओर रहे ।
पद्धति: वास बाहर निकालकर नितंब को ऊपर उठाते हुए पैरों को सीधा करें । सिर हाथों के बीच में रहे, हो सके तो जमीन पर लगा दें ।
पद्धति: श्वास अन्दर भरकर दायें पैर को दोनो हाथों के बीच में रखें, बायाँ पैर पीछे सीधा व तना हुआ रहे । और दृष्टि सामने की तरफ रहे ।
पद्धति: श्वास बाहर निकालकर बायें पैर को दायें पैर के पास लायें, घुटने सीधे करें, सिर को घुटनों से लगाने का प्रयास करें ।
पद्धति: श्वास अन्दर भरकर सामने से हाथों को ऊपर उठाते हुए पीछे की तरफ ले जायें ।
पद्धति: श्वास की गति सामान्य रखते हुए दोनों हाथ जोड़ लें तथा हाथों को छाती के सामने रखें । अंत में सम स्थिति में आ जायें ।